आज ही के दिन 1 जनवरी, 1848 ई. को महात्मा जोतिबा फुले और सावित्रीमाई फुले ने पुणे के भिंडेवाड़ा में अपना पहला स्कूल शुरू किया। यह स्कूल इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसकी स्थापना शिक्षा पर हजार साल पुराने ब्राह्मणवादी कब्जे को कुचलने का प्रतीक बन गया। उस दिन फुले दंपत्ति ने शूद्रों, अति-शूद्रों (एससी/एसटी/ओबीसीएस) और महिलाओं के लिए शिक्षा के बीज बोए थे, जिसमें कुल आबादी के 90% से अधिक लोग शामिल थे।
कुछ ही समय में, फुले दंपत्ति का शिक्षा आंदोलन व्यापक रूप से फैल गया। पहले स्कूल के शुरू होने के तीन साल में ही वे तीन स्कूल चला रहे थे और बाद में दो शैक्षिक ट्रस्ट के मार्फत महिला, दलित और पिछड़े वर्गों की शिक्षा को बढ़ावा दे रहे थे।
फुले दंपति द्वारा खोले गए स्कूलों ने शास्त्रों और वेदों की पारंपरिक ब्राह्मणवादी शिक्षा को खारिज कर दिया और इनके स्थान में विज्ञान, गणित और सामाजिक अध्ययन जैसे विषय शामिल कर दिए।
फुले दंपत्ति का एकमात्र उद्देश्य सत्य शोधक समाज का निर्माण करना था। एक ऐसा समाज जो शिक्षा से ही बन सकता है। उनका मानना था कि एक बार उत्पीड़ित जनता शिक्षा प्राप्त कर लेती है और सच्चाई की तलाश करती है, तो वे अपने अधिकारों और न्याय के लिए स्वतंत्र रूप से लड़ सकती हैं।
जाओ, शिक्षा प्राप्त करो। स्वावलम्बी बनो, मेहनती बनो, बुद्धि और धन इकट्ठा करो। ज्ञान के बिना सब खो जाता है हम ज्ञान के बिना पशु बन जाते हैं, बेकार नहीं बैठना, जाना, शिक्षा प्राप्त करना उत्पीड़ितों और परित्यक्तों के दुखों को समाप्त करना, आपके पास सीखने का सुनहरा मौका है इसलिए सीखो और जाति की जंजीरों को तोड़ो। ब्राह्मण के शास्त्रों को जल्दी से फेंक दो। ~~ सव्वित्रीमाई फूले
शिक्षा के अभाव में बुद्धि का अभाव होता है। जो नैतिकता की कमी की ओर ले जाता है, जो प्रगति की कमी की ओर जाता है। जिससे धन की कमी होती है, जो निम्न वर्गों के उत्पीड़न की ओर ले जाती है। देखें कि एक शिक्षा की कमी समाज की किस स्थिति का कारण बन सकती है! ~~जोतिबा फुले
लेख- रितेश ज्योति